भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह धरती हो गई / अशोक शाह

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक शाह }} {{KKCatKavita}} <poem> धरती ने जो नज़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती ने जो नज़्म कहा
नदी बन गयी

नदी-मिट्टी ने मिलकर
लिख डाले गीत अनगिन
होते गये पौधे और जीव

इन सबने मिलकर लिखी
वह कविता आदमी हो गई

धरती को बहुत उम्मीद है
अपनी आखि़री कविता से