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रंगों का त्यौहार सुहाना / शकुंतला कालरा

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आई होली, आई होली,
चारों तरफ़ हँसी-ठिठोली।
धूम मचाती आई टोली,
बच्चे नटखट, गुड़िया भोली।

झटपट पिचकारी ले आई,
उलटी-सीधी ख़ूब घुमाई।
फिर भी नहीं चालानी आई,
अपनी ही चुनरी रंगाई।

मल गुलाल अबीर चमकीले,
चलते बच्चे ढीले-ढीले।
लाल-गुलाबी नीले पीले,
कपड़े पहने सबने गीले।

लड़कों ने हुड़दंग मचाया,
झाँझ मजीर मृदंग बजाया।
इतना गहरा रंग लगाया,
कोई भी पहचान न पाया।

नानी ने गुझिया भिजवाई,
सबने मिलकर ख़ूब उड़ाई।
पुआ-पूड़ी दादी लाई,
जमकर खाई ख़ूब मिठाई।

रंगों का त्यौहार सुहाना,
मिलकर बच्चे गाते गाना,
ऊँच-नीच का भेद न जाना,
जीवन में सीखा मुस्काना।