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आज आई वह शाम क्यों साक़ी / उदय कामत
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आज आई वह शाम क्यों साक़ी
ले हरीफ़ों का नाम क्यों साक़ी
मिलती हो तुम तो बेरहम बन कर
जाते जाते सलाम क्यों साक़ी
ज़िक्र पर तेरे सजदे होते हैं
सब ही तेरे ग़ुलाम क्यों साक़ी
मौत तय तिरी इक झलक से है
बाकी ये इंतिज़ाम क्यों साक़ी
मुख़्तसर-सा तिरा तआरूफ हो
रोज़ के ताम-झाम क्यों साक़ी
हम भी तो उस खुदा के बंदे हैं
हम से अब राम-राम क्यों साक़ी
जपते रहते हैं रात दिन ज़ाहिद
नाम तेरा हराम क्यों साक़ी
सारे आशिक़ है तिरे महफ़िल में
आज खाली ये जाम क्यों साक़ी