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वह कुछ हो जाना चाहता है / भगवत रावत
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वह कुछ हो जाना चाहता है
तमाम उम्र से आसपास खड़े हुए
लोगों के बीच
वह एक बड़ी कुर्सी हो जाना चाहता है
अन्दर ही अन्दर
पल-पल
घंटी की तरह बजना चाहता है
फोन की तरह घनघनाना चाहता है
सामने खड़े आदमी को
उसके नंबर की मार्फ़त
पहचानना चाहता है
वह हर झुकी आँख में
दस्तख़्त हो जाना चाहता है
हर लिखे काग़ज़ पर
पेपरवेट की तरह बैठ जाना चाहता है
वह कुछ हो जाना चाहता है।