भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओस की बूँद / सपन सारन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:12, 13 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सपन सारन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ओस की इक बूँद जैसे
पकड़े बेल के पत्ते को
तय है उसका नीचे गिरना
तड़पे संग में रहने को
पल भर को
बस पल भर को तो जीवन हो...।