भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंख निराले / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:26, 14 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश विमल |अनुवादक= |संग्रह=काना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
परियों वाले पंख निराले
अगर मुझे मिल जाएँ
झूम झूम कर उडूं गगन में
सभी चकित रह जाएँ।
मिलूं लपक चंदा मामा से
तारे चुनचुन लाऊँ
आसमान की अद्भुत बातें
मित्रों को बतलाऊँ।
शिखर पर्वतों के फिर मुझ को
कंधों पर बिठलाएँ।
जब चाहूँ झरनों का
ठंडा मीठा जल पी आऊँ।
जब चाहूँ ऊंचे पेड़ों की
डालों पर सो जाऊँ।
पत्ते पंखे झले
पखेरू मीठे गीत सुनाएँ।