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पितल का फूल / आद्याशा दास / सुमन पोखरेल
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जो कुछ भी रख दो नाम मेरा
भूमिका कुछ भी तय कर दो मेरे लिए
पूछ लो, जो भी मन चाहे;
समर्पित कर चुकी हूँ खुद को मैने
तुम्हारा प्रेम की सम्पूर्ण भक्ति में,
वो चाहे सफेद हो या फिर पिली ।
कोई भी रंग चुन दो
ऐन वक्त की तुम्हारी ईच्छा के मुताबिक,
पहन लुंगी मैं पूर्ण चाह से
दृढ लगन के साथ ।
शरीर या मस्तिष्क,
विचार या स्पर्श
तुम ही तय कर लो रात के लिए,
छुप जाउँगी उसी में मैँ
सम्पूर्ण रूप से स्वतन्त्र हो कर ।
क्या तुम ने महसुस नही किया?
चाहे तुम मुझे अपना बगिचे का अभिनव फूल बना लो
या फिर तुम्हारा पेपर वेट का
भावावेश से पिघलने वाली पित्तल का फूल,
तैयार पाओगे तुम मुझे जब कभी भी ।
ढुँडना नहीं है मुझे बाहर निकलने का रास्ता
इस एकतरफा रास्ते का यात्रा से ।