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है बहुत मुश्किल / रोहित रूसिया

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है बहुत मुश्किल
अभी भी
उन क्षणों को
भूल जाना

आसमानों तक
गयी थीं
जब उमंगों की पतंगें
जब गले
लगने लगी थीं
अनगिनत
अनगढ़ तरंगें
शब्द उस
मधुरिम कथा के
कब न जाने आँख में
उड़ कर गिरे जो
धूल बन कर
है बहुत मुश्किल
अभी भी
उन कणों को
भूल जाना

साहिलों पर
रेत की जो भी लिखा
सब मिट चुका है
सिर्फ कोई काफ़िला
यादों का
यादों में रुका है
मखमली कालीन-सी
वो दूब
जिनकी नोंक पर
ख्व़ाब कुछ
हमने लिखे थे
है बहुत मुश्किल
अभी भी
उन तृणों को
भूल जाना

है बहुत मुश्किल
अभी भी
उन क्षणों को
भूल जाना