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सिकुड़ गई क्यों / रोहित रूसिया

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सिकुड़ गई क्यों
धीरे-धीरे
आँगन वाली छाँव

वो आँगन का नीम
जो सबका
रस्ता तकता था
भरे जेठ में
हाँक लगाता
सबको दिखता था
क्यों गुमसुम
जो देता था
सबके हिस्से की छाँव

इक दरवाज़ा था
जिस घर में
चार हुए दरवा़जे
सबके अपने-अपने उत्सव
अपने बाजे-गाजे
आँगन को
सपनों में दिखते
नन्हें-नन्हें पाँव

धुआँ भरा
कितना जहरीला
अब इस घर के अंदर
भीतर से
बेहद बदसूरत
बाहर दिखते सुंदर
जबसे बूढ़ा
नीम सिधारा
सूना अपना गाँव