कल सुना इन रास्तों पर
खौफ़ के तूफ़ान थे
भागती फिरती रही
सहमी हवा
डरती हुयी
इस गली से उस गली तक
मिन्नतें करती हुई
दर्द के गाँवो के सारे
घर पड़े सुनसान थे
भूख की बस्ती में
कैसा जश्न,
या कैसी ख़ुशी
पेट की रोटी से होती
हर घड़ी रस्साकशी
मान के ईमान के
सारे सफे वीरान थे