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चलो घर बनाने को / रोहित रूसिया

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चलो घर बनाने को
मुस्कान ढूँढें

वो तितली वह कंचे
वो मिट्टी की ख़ुशबू
ये मोटू, वह भोलू,
ये छोटू, वह लम्बू
चलो फिर से
बचपन के चोले पहन कर
बिना बात हँसने का
सामान ढूँढे

किसी के भी क़र्जे में
डूबा नहीं हो
जो मौसम की अनबन से
ऊबा नहीं हो
जिसे हर अलम हाथ मल
देखता हो
चलो आज हम वह ही
खलिहान ढूँढें

रहम और ईमां
वफ़ा हो जिगर हो
नज़र में नमी
होठ पर स्वर मधुर हो
फकत प्यार जिसका
धरम और मज़हब
चलो मिल के
सब ऐसा इंसान ढूँढें

चलो घर बनाने को
मुस्कान ढूँढें