इथाका / कंस्तांतिन कवाफ़ी / असद ज़ैदी
इथाका के लिए निकलो तो इस इरादे से निकलो
कि सफ़र बहुत लम्बा होगा,
रोमांच भरा, जानकारी और खोज से भरपूर ।
लाइस्त्रिगोन और साइक्लॉप,
क्रुद्ध पोसाइडन — उनसे डरने की ज़रूरत नहीं :
ऐसी चीज़ें कभी तुम्हें दिखाई भी नहीं देंगी
बशर्ते कि तुम अपना ध्यान ऊँची चीज़ों पर रखो
बशर्ते कि एक दुर्लभ उत्साह से भरी रहे
तुम्हारी आत्मा और देह ।
लाइस्त्रिगोन और साइक्लॉप,
वहशी पोसाइडन — इस सफ़र में तुम्हारा उनसे सामना नहीं होने वाला
बशर्ते कि तुम उन्हें अपनी आत्मा ही में बिठाए न चल रहे हो
बशर्ते कि तुम्हारी आत्मा ही उन्हें तुम्हारे सामने खड़ा न कर दे ।
कामना करो कि सफ़र लम्बा हो,
कि आएँ गर्मियों की ऐसी अनेक सुबहें जब,
बेपनाह लुत्फ़, बड़ी ख़ुशी के साथ,
तुम उतरो बंदरगाहों पर ज़िन्दगी में पहली बार;
कि तुम रुको फ़ीनीशियन बाज़ारों में
नफ़ीस चीज़ें ख़रीदने के लिए,
सीपियाँ और मूँगे, अम्बर और आबनूस,
हर तरह की सुगंधियाँ, उम्दा इत्र —
जितने भी उम्दा इत्र तुम ख़रीद सको ख़रीद लो;
कि तुम जा सको मिस्र के अनेक शहरों में
उनके विद्वानों से ज्ञान का ज़ख़ीरा हासिल करने ।
इथाका को हमेशा अपने ख़यालों में रखो ।
तुम्हें आख़िरकार वहाँ पहुँचना है ।
पर सफ़र तेज़ करने जैसी कोई जल्दबाज़ी न करना ।
बेहतर हो तुम्हारी यात्रा बरसों जारी रहे,
ताकि द्वीप तक पहुँचते-पहुँचते तुम बूढ़े हो जाओ,
हरफ़नमौला, ज्ञानी और अनुभवसम्पन्न,
इस आस में नहीं कि इथाका जाकर अमीर हो जाओगे ।
इथाका ने तुमसे यह अद्भुत सफ़र कराया ।
इथाका के बिना तुम इस सफ़र पर निकलते ही नहीं ।
अब इथाका के पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है ।
और अगर तुम इथाका को ग़रीब पाओ तो ऐसा नहीं कि तुम्हारे साथ धोखा हुआ
तुम इतने समझदार और तजरुबेकार हो चुके होगे
कि तुम्हें मालूम होगा इन इथाकाओं का हासिल क्या है ।
(1911)
अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी