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चोंचाक खोता / दिलीप कुमार झा

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एक जोड़ चोंचा कैएक दिन सँ
हमरे घरक भीतर बनब चाहैछ
अपन आश्रय अपन खोंता
यत्र-तत्र सँ रंग-बिरंग क तिनका
संग्रहित कअ लागल अछि उद्यम मे
छिटल खर-पात के बहारैत काल
नितह कहै छथि पत्नी
एकरा भगाउ तंग कयने अछि
आहा! की करबै
अपन घर बना रहलए
कखनो ग़र सँ देखलियै
एहि चोंचाक जोड़ा केँ
जुआनी में पायर धरबे कयलक अछि
खोंता बना ओहि में विश्राम करत
निश्चिंत सँ प्रणय विहार करत
ओ लोकनि ओ सबटा करअ चाहैत अछि
जे हमरा लोकनि नञि कअ पौलहुँ
नष्ट कअ लेलहुँ सुवर्ण जुआनी
एहि दू कोठरीक घरक लेल
करअ दियौ विलास
भेटतै ई दिन फेर
गाछ-बिरिछ पर खोंता कियो बनबअ दैत छैक
गाछवला कें गाछक किरेजा चाही
आ सरकार के सर्विस टैक्स
सोचियौ! बेचारा कतय जाय
चोंचाक जोड़ा कें सांकेतिक भाषा में पुछलियै
घरके भितर घर बनेबह
संकेते में उतारा देलक
ककरो घर पर घर
आ हम सब दिन रहू
अकाशे तर।