भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बारिश / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:16, 30 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहंशाह आलम |संग्रह= }} बहुत देर तक भीगती है झींसी ...)
बहुत देर तक भीगती है झींसी में
पानी की बूंदों में
वह कुछ बोलती नहीं है सिर्फ़ नहाती है
बारिश में नहाते हुए
तोते के पंख से भी हल्का महसूस करती है
वह अपनी आत्मा को