भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो कहते हैं कहीं दरिया नहीं है / शहरयार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 29 सितम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो कहते हैं कहीं दरिया नहीं है
सुना उन से कोई प्यासा नहीं है।

दिया लेकर वहाँ हम जा रहे हैं
जहाँ सूरज कभी ढलता नहीं है।

न जाने क्यों हमें लगता है ऎसा
ज़मीं पर आसमाँ साया नहीं है।

थकन महसूस हो रुक जाना चाहें
सफ़र में मोड़ वह आया नहीं है।

चलो आँखों में फिर से नींद बोएँ
कि मुद्दत से उसे देखा नहीं है।