भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींद से आगे की मंज़िल / शहरयार
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 29 सितम्बर 2020 का अवतरण
ख़्वाब कब टूटते हैं
आँखें किसी ख़ौफ़ की तारीकी से
क्यों चमक उठती हैं
दिल की धड़कन में तसलसुल बाक़ी नहीं रहता
ऎसी बातों को समझना नहीं आसान कोई
नींद से आगे की मंज़िल नहीं देखी तुमने।