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हे सूचना / ब्रज श्रीवास्तव

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वे रो रहे हैं
प्रिय जन की मृत्यु पर
तुम बिल्कुल ही पत्थर हो क्या जो
कह रही हो
आबादी घनत्व के हिसाब से
मौतें कम हो रहीं हैं यहाँ

किस क़दर जूनून में हो तुम
तुम्हें पता ही नहीं
कैसा लगता है हमें पढ़कर अख़बार में
ऐसे शब्द जैसे
आज की नई मौतें
 
हे सूचना
सचमुच तुम
बहुत क्रूर हो इस वक्त
तुमसे लाख दर्जा
बेहतर होती है कविता जो
अपनेपन से
समझाती है
आदमी को दुख के वक़्त