भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक भगवान था / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 3 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रज श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुझे भी कोई डांट देता था
सुबह देर तक सोने पर
गर्व करता था कोई
मेरे भले कामों पर
मुझे हरारत तक होने पर
घबरा जाता था कोई
जिम्मेदारी निभाना सिखाता था
जिम्मेदारी ख़ुद निभाकर
मेरी बेटी के सामने
मेरी ग़लती बता देता था कोई
आहट
लिए ही रहता था हर समय
कि मैं कहाँ हूँ इस समय
मेरे जीवन में भी एक भगवान था
घर में थी एक मज़बूत छत
ग्यारह साल पहले तक
ग्यारह साल पहले तक
मैं भी पिता वाला था