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दिल्ली शहर में आइसक्रीम ख़रीदते हुए / राजकमल चौधरी

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श्री० होटल के जिस कमरे में रहते हैं हम लोग उसकी तिकोनी
खिड़कियाँ फ़र्श से शुरू होती हैं नंगे टखने
नंगी पिण्डलियाँ देखने के लिए ।

एक औरत अपने ख़ाली पर्स का मुँह खोलकर किसी दुकान के
पिछले दरवाज़े में घुसती है हम लोग देर तक
शेव करते रहते हैं ।
 
दूतावासों की ओर चले जाने के लिए अजमल ख़ाँ रोड की
लम्बाई हमारे घुटनों से शुरू होकर उसके
ख़ाली पर्स में फिसल जाती है

पिघली हुई आइसक्रीम की तरह (शाम के वक़्त) चौराहों पर
खड़े होते ही
हम लोगों को अपने बचपन की गलियों में सोए हुए
लावारिस कुत्ते की आवाज़ पुकारती है

वापस चले आओ
अभी साइरन बजेगा वापस चले आओ अभी प्रधानमन्त्री का
भाषण होगा वापस चले आओ अभी
वितरण होगा राजभक्तों को पुरस्कार अब तुम लोग
वापस चले आओ

लेकिन जो लोग भूल चुके हैं अपना नाम अब कहाँ
वापस जाएँगे तिकोनी खिड़कियों के अन्दर
झाँकने का तमाशा छोड़कर
क्यों वापस चले जाएँगे अकाल-ग्रस्त इलाक़ों में रिलीफ़
अन्न का हिस्सा माँगने के लिए ?