भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया सुंदर हो जाए / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 4 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=प्रक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह दुनिया जैसी है उससे
कुछ सुंदर हो जाए,
फूलों जैसी खिले धरा यह
खिल करके मुसकाए।

कैसे होगा यह सब मम्मी
अजब-गजब-सा जादू,
कहाँ मिलेगी छड़ी हाथ में
लेकर जिसे हिला दूँ?

धरती सारी ओढ़े पल में
हरियाली की चादर,
टँके हुए फूलों के बूटे
जिसमें सुंदर-सुंदर।

सुंदर गलियाँ और बगीचे
हो हर डगर सुहानी,
हाथ हिलाकर हमें बुलाए—
धरती धानी-धानी।

फूलों के नन्हे होठों पर
परियों सी मुसकानें,
हवा सुनाए जिन्हें प्यार से
मीठे-मीठे गाने।

झगड़ा-टंटा, धूल-धुआँ हो
सात समंदर पार,
गुस्सा कम हो, बातों में हो
थोड़ा ज्यादा प्यार।

गरमी की झुलसन घट जाए
या पाले की मार,
मौसम हमको रोज पुकारे—
थोड़ा घूमो यार!

तो अपनी यह दुनिया सचमुच
कितनी अच्छी होगी,
दुनिया जिसमें प्यार बहुत हो
कितनी सच्ची होगी।