Last modified on 6 अक्टूबर 2020, at 00:29

खेल-खेल में मेल / प्रकाश मनु

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:29, 6 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=प्रक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्या होता ई-मेल, सुनो जी
क्या होता ई-मेल,
खेल-खेल में करवाता यह
कैसे सबका मेल!

कंप्यूटर के नेटवर्क से
शुरू हुआ जो खेल,
अब तो भाई, घर-घर पहुँचा
बन करके ई-मेल।

क्या होता ई-मेल, सुनो जी
क्या होता ई-मेल!

मेल जर्मनी से आया, झट
पहुँच गया जापान,
भैया ने ई-मेल किया, अब
पढ़ो लगाकर ध्यान!

चुपके-चुपके हो जाती है
ऐसे ही सब बात,
दिल से दिल को मिला रहा यह
अजब-अनोखा खेल!

क्या होता ई-मेल, सुनो जी
क्या होता ई-मेल!

अमरीका से पापा लिखते
अब कैसी तबीयत है?
मम्मी ने झट मेल किया
हाँ, अब तो कुछ राहत है।

दुनिया के कोने-कोने से
लाकर सब संदेश,
एक पिटारे में रख जाता,
जादूगर ई-मेल!

क्या होता ई-मेल, सुनो जी
क्या होता ई-मेल!

ऐसा गजब डाकिया, पल में
काटे लाखों चक्कर,
लाख दिलों की बात पहुँचती
बैठा कभी न थककर।

चाल गजब की, ढाल गजब की,
नई-नई-सी राह,
दूत यही है नए जमाने
का प्यारा ई-मेल!

क्या होता ई-मेल, सुनो जी
क्या होता ई-मेल!

मेल आई.डी. बतलाओ तो
भेजूँ तुमको मेल,
तुम भी जानो खेल-खेल में
होता कैसा मेल।

तेज हवा से जाती चिट्ठी
बस, ऐसा यह खेल,
नहीं डाकिया कोई ऐसा
जैसा है ई-मेल।

क्या होता ई-मेल, सुनो जी
क्या होता ई-मेल!