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लोरी / तो हू / पीयूष दईया

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मधुमक्खी जो बनाती है शहद, प्यार करती है फूलों को
मछली जो तैरती है, प्यार करती है पानी को
पंछी जो गाता है, प्यार करता है आकाश को
इनसान जो जीना चाहता है, हे मेरे बच्चे !
उसे ज़रूर करना चाहिए अपने साथियों और अपने भाइयों से प्यार

एक तारा आकाश को जगमग नहीं कर सकता
एक ढेरी पके चावल पूरी फ़सल नहीं बना सकते
एक आदमी हर हाल में दुनिया नहीं है
एक बुझते अंगार से ज़्यादा नहीं

पहाड़ पृथ्वी पर बना है
अगर यह धरती की दीनता को ठुकरा दे, कहाँ बैठेगा यह?
गहरा समुद्र पी जाता है हर नदी-सोता
अगर यह ठुकरा दे छोटे नदी-सोतों को, वहाँ पानी नहीं बचेगा

बूढा बांस प्यार करता है कोंपल को
कोमलता से दिनोंदिन
जब तुम सयाने हो बड़े ज़्यादा पिता से
तुम लोगे गोल धरती अपनी बाहों में