हुआ अजूबा एक दिन ऐसा
जूता मेरा उड़ा हवा में,
आँधी आई ऐसी झटपट
जूता मेरा उड़ा हवा में।
ऊपर ही ऊपर उड़ता था
उड़ता जाता, उड़ता जाता,
जितनी बातें अचरज वाली
सब सहेजकर बढ़ता जाता।
उड़ते-उड़ते फिर एक दिन वह
जूता लौटा मेरे पास,
उसमें खुशियाँ सारे जग की
बड़े अजूबे खासमखास।
बोला जूता दुनिया घूमा
मुझसे सारी दुनिया जी,
जोकर जैसे हँसता था वह
खुश होती चुनमुनिया जी।