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दीप जले थे / प्रकाश मनु
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किस्सा एक पुराना बच्चो
लंका में था रावण,
राजा एक महा अभिमानी
कँपता जिससे कण-कण।
सुंदर थी लंका, लंका में
सोना ही सोना था,
लेकिन पुण्य नहीं, पापों का
भरा हुआ दोना था।
तभी राम आए बंदर-
भालू की लेकर सेना,
साध निशाना सच्चाई का
तीर चलाया पैना।
लोभ-पाप की लंका धू-धू
जलकर हो गई राख,
दीप जले थे तब धरती पर
अनगिन, लाखों-लाख!