अक्तूबर / लुईज़ा ग्लुक / ओम निश्चल
क्या फिर से सर्दी आ गई,
क्या यह फिर ठण्ड के दिन हैं
फ्रैंक अभी बर्फ़ पर नहीं फिसल रहा
क्या वह अभी ठीक नहीं हुआ,
क्या वसन्त के बीज बोए नहीं गए
रात का अन्त नहीं हुआ
क्या पिघलती हुई बर्फ़ से
संकरे नाले में बाढ़ नहीं आई
मेरे शरीर को क्या बचाया नहीं गया
क्या यह सुरक्षित नहीं था
अदृश्य खरोंचें नहीं थीं उसपर
चोट के ऊपर
आतंक और ठण्ड,
क्या उनका अन्त नहीं हुआ,
वापस बग़ीचे नहीं लगाए गए —
मुझे याद है कि पृथ्वी कैसी लगी, लाल और घनी,
कड़ी पँक्तियों में, बीज नहीं बोए गए थे
लताएँ दक्षिणी दीवार पर चढ़ी नहीं
मैं आपकी आवाज़ नहीं सुन सका
क्योंकि हवा रो रही थी, ख़ाली मैदान में सीटी बजाती हुई
मुझे अब कोई परवाह नहीं है
कि यह कैसी ध्वनि आ रही है
उस निरर्थ ध्वनि का वर्णन करने के लिए
मैं कब का चुप हो गया, ऐसा पहली बार कब लगा
ऐसा लगता है कि यह जो भी है उसे नहीं बदल सकता है —
रात का अन्त नहीं हुआ, पृथ्वी क्या सुरक्षित नहीं थी
जब यह लगाया गया था,क्या हमने बीज नहीं बोए
क्या हम पृथ्वी के लिए आवश्यक नहीं थे,
लताओं के लिए आवश्यक न थे,
क्या वे सब काट डाली गईं ?
इन लताओं के लिए ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : ओम निश्चल