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सूखते हैं जाल मीनल / सुरेश सलिल
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सूखते हैं जाल मीनल
यही काल सुकाल, मीनल
जाल उनके, हाट उनकी
कर विफल हर चाल, मीनल
यह समय धीवर समय है
याद रख हर हाल, मीनल
उदधि ही तेरे लिए है
सुरक्षा संजाल, मीनल
यहाँ तो भागीरथी भी
प्यास से बेहाल, मीनल
(इस प्रस्तुति में पहली दो पँक्तियों का केन्द्रीय विचार नई कविता से जुड़े रहे कवि डा० जगदीश गुप्त की एक कविता से प्रेरित है )