भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गांधी / रूपम मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 17 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपम मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम उदास न होना गाँधी !
सत्य अभी भी संसार में सबसे ज़्यादा चमकता है
झूठ अभी सत्य के पीछे छुपकर खड़ा होता है

अब भी क्रूरता को कहना ही पड़ता है — अहिंसा परमोधर्मः
आततायी अब भी न्याय का सहारा लेकर
अपने दम्भ को उजागर करते हैं

प्रार्थना सभाओं में अब भी गाए जाएँगे — वैष्णव जन ते......!
हाँ, ये खेद रहेगा कि वहाँ बैठे जन पराई पीर न जानेंगे

अब भी जिसमें ज़रा भी करुणा बची होगी
वो गोडसे नाम सुनते ही शर्म से सिर झुका लेगा

साबरमती के बूढ़े फकीर ! तुम युगप्रवर्तक थे
क्षमा दया का पारावार जानने के लिए
संसार तुम्हारे समक्ष हमेशा हाथ फैलाता रहेगा

अभी एकदम निराश न होना गाँधी !
लोग धीरे-धीरे ही सही लौटेंगे अहिंसा की ओर

देखना एकदिन कृष्ण लौट आएँगे समरभूमि से गोकुल
राम की आँखों से दुख के आँसू गिरेंगे शम्बूक वध पर

कर्ण प्रतिकार भूलकर न्याय को सिर माथे पर रखेगा
एकलव्य के कटे अँगूठे को देखकर द्रोण ग्लानि से भर जाएँगें

तुम आस बचाए रखना गाँधी ! आने वाला युग अन्धी जड़ता को ठोकर मारेगा !

जानते हो गाँधी ! अभी भी बच्चे चश्मा, लाठी और एक कमज़ोर सी देह की छाया देखकर उल्लास से कहते हैं — वो देखो गांधी !!

भले ही उनके कोमल मन पर थोप दिया गया है कि
देश मे दंगो का कारण गांधी हैं

अब भी धारा का सबसे पिछड़ा व्यक्ति तुम्हें जानता है गांधी !
भले इस झूठ के साथ कि पाकिस्तान बनने का कारण
गांधी थे ।