भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उम्मीद का चिराग़ / कमलेश कमल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:40, 21 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश कमल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस बियाबां में
हताश, निराश
हम दो पथिक
श्रमशान्त
राह नहीं, रहबर नहीं
सूर्य की किरणें नहीं
होने को साँझ
फिर विकट अंधेरा
अगहन मास
कँपकँपाती ठंड
अवनि तल
बर्फ की-सी सर्द
नसें सुन्न
खाली तुम्हारा आँचल
मेरा झोला
कुछ भी नहीं पाथेय
फिर भी जला है
सुलगा है...
उम्मीद का चिराग़
आओ इसे हवा दें!