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कविते / अरविन्द यादव
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हे कविते
मुझे भा गईं हो तुम
तुम्हारी खूबियाँ
और उससे भी बढ़कर
तुम्हारा अन्तहीन सौन्दर्य
तुमसे जुड़कर जुड़ जाऊँगा मैं
उन संवेदनाओं से
जिनका होना बनाता है
एक मानव को मानव
इतना ही नहीं
निश्चित ही अपनाकर तुम्हें
आ जाएगी मेरे भावों में
उदारता व उदात्तता
तुम्हें सोचकर
नहीं होगी अनुभूति उस दर्द की
जो कसक उठता है सीने में
सोचकर बिछुड़े मनमीतों को
तुमसे नहीं मिलेगा धोखा
उस तरह
जैसे कि देतीं है अक्सर
प्रेमिकाएं-प्रेमियों को
क्यों कि गवाह है अतीत
तुम जिनकी, जो तुम्हारे, ताउम्र
मरने के बाद भी किया जाता है याद
तुम्हें उनका, उन्हें नाम लेकर तुम्हारा
इसीलिए हे कविते
अब जीना चाहता हूँ मैं
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारा होकर।