भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गिद्ध / अरविन्द यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:06, 22 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आज अचानक मेरे शहर में
दिखाई देने लगे झुण्ड के झुण्ड गिद्धों के
देखते ही देखते
शहर के हृदय पर एक बडे़ मैदान में
होने लगा एक विशाल सभा का आयोजन
सभा को होते देख
दौड़ पडी़ मछलियाँ भी सभा कि ओर
निकलकर, शहरों से ही नहीं गाँवों से भी
मंचासीन मुखिया डाल रहा था दाना मछलियों को
ताकि फस सकें वह उसके जाल में
वह दिला रहा था विश्वास, अटूट विश्वास के साथ
कि उन्हें नहीं होगी कोई भी हानि उनसे
अब वह करेंगे उनकी हिफ़ाज़त
वह करेंगे व्यवस्था, उनके खाने की
उनके पीने की, उनके रहने की
इतना ही नहीं, उनके आने-जाने की
मछलियाँ खुश थीं कि अब वह रह सकेंगी सुरक्षित
अब वह हो जायेंगी मुक्त जीवन की हर समस्या से
और गिद्ध भी थे खुश यह सोचकर
कि फस गईं हैं मछलियाँ, उनके जाल में।