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वैरागी का गीत / रामगोपाल 'रुद्र'

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जीवन में जो भी प्यार मिला,
जन-जन से जो दुत्कार मिली,
विजयी बन कर जो कुछ पाया,
उम्मीदों को जो हार मिली,
अरमान संजोये थे जितने
बालू की नीर लकीरों में,
वरदान मिले जो-जो जग से,
पीड़ा जो अपरम्पार मिली;
मैं तोड़ चला सारे बंधन, सब छोड़ चला जो प्यारा है!
लो, आज सभी कुछ लो, साथी! यह सब कुछ आज तुम्हारा है।

वह एक बिन्दु-सी, जो मीलित
कलि के उर में अज्ञात पली,
उच्छलित-सिन्धु-शीतल-तल में
जो चिर अभाव की ज्वाल जली,
वह एक अतृप्त पिपासा-सी,
जीवन की मुग्ध निराशा-सी,
सीपी के सम्पुट में सिमटी
मोती-सी जो वासना ढली,
हलचल जिसकी पारा ढलमल, संयम शीशे की कारा है!
लो, आज सभी कुछ लो, साथी! यह सब कुछ आज तुम्हारा है।

सपने तो बहुत-बहुत देखे,
सुख-दुख भी बहुत जुगोये हैं,
जाने कितने अनमोल रतन
पाये हैं, मैंने खोये हैं,
उलझन के इन शैवालों में
छल-जालों को क्या-क्या न मिला!
फूले न समाये प्राण कभी
तो कभी फूटकर रोये हैं;
मोती-मणियों से ही मैंने अपना यह गेह सँवारा है;
पर आज सभी कुछ लो, साथी! यह सब कुछ आज तुम्हारा है।

थी चाह बड़ी, मैं भी देखूँ
दूबों की कोमल राह सखे!
थी चाह स्नेह-समुंदर की
मैं भी पा सकता थाह सखे!
पर चाव रहे मन के मन ही
मेरे बालू ही बाँट पड़ी,
छू मुझे बसंती झोंका भी
बन जाता लू का दाह सखे!
तूफान जहाँ कण-कण में है, यह वह अंत: सरिधारा है!
लो, आज सभी कुछ लो, साथी! यह सब कुछ आज तुम्हारा है!

काँटे मेरे पग-चुम्बन को
मग में जो थे बेजार खड़े,
मेरी पावन पग-धूलि चढ़ा
सिर पर, लज्जा के भार गड़े;
आँधी आयी, पर मैं न रुका,
तूफान उठे, पर मैं न झुका;
चट्टान अड़ी, उखड़ी झंझा,
पग आगे ही कुछ और बढ़े;
साथी! यह तो वह जीवन है, संकट ही जिसे दुलारा है;
पर आज सभी कुछ लो, साथी! यह सब कुछ आज तुम्हारा है।

मेरा बल ही क्या था जो मैं
लहरों से होड़ लगा पाता!
साधन ही क्या थे प्राप्य मुझे,
जो मन की साध मिटा पाता?
फिर भी अनजान हिलोरों पर
बढ़ चली नाव झोंके खाती;
कौतूहल था, तूफानों में,
देखूँ तो, क्या-क्या है आता;
हर कष्ट झेल, हर विघ्न ठेल, अपनेपन से जो हारा है;
वह अपनापन, यह लो साथी! यह सबकुछ आज तुम्हारा है।

मेरी जितनी सामर्थ्य रही,
मुझसे जितना जो बन पाया,
मैंने तो यत्न किया, लेकिन,
फिर भी, न बनी कंचन काया;
लोहा भी पारस को छूकर
तर जाता है बनकर सोना,
मेरे तो पारस भी निकले
मुट्ठी-भर मिट्टी की माया;
फिर भी, मैंने समझा, मेरा सपना ही सत्य-सहारा है;
यह सपना भी अब लो, साथी! यह सब कुछ आज तुम्हारा है।