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गरीबी / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

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इंसान के गुलाबी गाल पर
बदनुमा दाग है ग़रीबी
कचरे में पडा एक पोस्टर।

नहीं नहीं फूंक से पहाड़ को
उडाया नहीं जा सकता
लेकिन चहरे का दाग
मिटाने के लिए गर्दन
काटी नहीं जाती।
 
जितनी मैली उतनी ज़रूरी भी।
न होती तो हमारा घर
स्वच्छ रखता कौन
किचिन से टॉयलेट तक।
पानी तक अपने हाथ से
हम पी नहीं सकते।

झंडे पर चिपकी हुई
रिसते घाव की तस्वीर
सत्ता पर चढ़ने की
आसान-सी सीढी।
 
सारी योजनाएँ बनती हैं
उसी के उत्थान के खातिर।
पर पानी में लिखी इबारत॥