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प्रभाती / रामगोपाल 'रुद्र'

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रात गई, अब जागो।

मरण-सेज छोड़ो अब सत्वर,
अरुणिम किरण-कूल से भर-भर
पान करो जीवन जड़ताहर,
लघुकर तन्द्रा त्यागो।

माँग रहे जीवन जड़-जंगम,
मुग्धमना मंगल-सुख-संगम,
तुम केवल अविकल श्रम-संयम
अपने प्रभु से माँगो।

पूर्णतेज दिनमणि, लो! आया,
अपने साथ सत्य-युग लाया।
छोड़ो, पुरुष, स्वप्न की माया,
चलो, काम पर भागो।