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ट्रेन में अंत्याक्षरी खेलती लड़कियाँ / नरेन्द्र जैन

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अपनी यात्रा से बेख़बर

अपने आप से बेख़बर

घर से पहले-पहल बाहर निकलीं

अपने गंतव्य से बेख़बर

सात लड़कियाँ

भागती हुई ट्रेन में

अंत्याक्षरी खेल रही हैं


लड़कियाँ जानती हैं कि

अंत्याक्षरी में कभी ख़त्म

नहीं होंगे शब्द, गीत और उनकी लय

लड़कियाँ जानती हैं कि

उमंग से भरे उनके शब्द भी

लगातार स्वप्न देख रहे हैं


भागती ट्रेन में

बजती हैं तालियाँ

लहराते हैं केश

चमकती हैं जवान आँखें


लड़कियाँ शायद नहीं जानतीं

कि सबसे अच्छी उम्र

जीवन का सबसे अच्छा पल

वही होता है

जब

दौड़ती ट्रेन में

खेला जा रहा हो खेल

अंत्याक्षरी का।