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जब-जब तुम आते हो / रामगोपाल 'रुद्र'
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जब-जब तुम आते हो, उपवन खिल जाता है!
आँधी की चंचलता रुक जाती,
संयत हर शाखा है झुक आती;
तुमसे पाकर करुणा के सीकर
चन्दन-वन-ज्वाला है चुक जाती;
तुमको पाकर वन को क्या तो मिल जाता है!
कलियों के आनन अरुणा जाते,
अभिनव तरुपल्लव तरुणा जाते;
सिंचित होकर तुमसे, हे रसधर!
कर्कश काँटे तक करुणा जाते!
बौछारों से तप का आसन हिल जाता है!