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मैं क्या चाहूँ? / रामगोपाल 'रुद्र'
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मैं क्या चाहूँ? चाह तुम्हारी;
चाह तुम्हारी! मैं क्या चाहूँ?
चलने दोगे जो मनमाना,
तो मेरा फिर कौन ठिकाना?
किस नाले में रथ ले जाऊँ;
पाँव तुड़ाऊँ और कराहूँ!
मेरी रास तुम्हारे कर है,
मैं क्या जानूँ, लक्ष्य किधर है?
कर्पण बिन अविनीत तुरग मैं
भाव तुम्हारा कैसे थाहूँ?
ऐसे में जो यों हाँकोगे,
धूली ही तुम भी फाँकोगे!
परम रथी तुम हो, फिर भी, मैं
इस गति को किस भाँति सराहूँ?