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तू अपना घर अगर / रामगोपाल 'रुद्र'

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तू अपना घर अगर सजाकर नहीं रखेगा
तो कोई मेहमान पधारेगा ही क्यों?

यों तो जिसे ग़रज़ होती है, जाता ही है;
ग़रज़मन्‍द ठुकराने पर आता ही है;
लेकिन जिसका मन कि महाजन ही घर आवे,
वह व्यवहारकुशल घर-बार सजाता ही है!
भग्न भीत पर ही जिसकी नग्नता लिखी हो,
ऐसे घर, मणिकर पुकारेगा ही क्यों!