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ताल से तीर पर / रामगोपाल 'रुद्र'
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ताल से तीर पर, तीर से मेरु पर,
अब किधर, किस शिखर ले चलोगे, कहो!
थी तराई जहाँ, मन निडर था वहाँ,
राह थी सामने, देखता मैं चला;
अब चढ़ाई यहाँ, हर क़दम डर जहाँ,
आँख बाँधे बढ़ूँ किस तरफ़ मैं, भला?
आँख होती खुली, साफ़ मैं देखता
था कहाँ, अब कहाँ, हूँ कहाँ जा रहा;
पर, तुम्हीं डर गए देख गहराइयाँ
मैं कहीं डर न जाऊँ, गिरूँ ढलमला;
डाल दीं आँख पर मेघ की पट्टियाँ,
बिजलियाँ बन, मगर, कब बलोगे, कहो!