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चरण में मन को शरण दो / रामगोपाल 'रुद्र'
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चरण में मन को शरण दो।
नाम-भर मैंने सुना है;
रूप, क्या मालूम, क्या है;
किस तरह मैं देखता हूँ
देखना हो तो नयन दो!
एक पग से भूमि नापी,
दूसरा आकाशव्यापी;
नाप लो मेरा अहम् भी
शीश पर पावन चरण दो!
सिद्धि-छल-छवि के चितेरे!
एक तुम ही साध्य मेरे;
माँगता तुमसे तुम्हीं को
भक्ति ही का आभरण दो!