भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन कहे / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 17 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौन कहे, मन अन्‍ध नहीं है!

टहटह लाल अँगार धवल है,
दाह कराल तुहिन-शीतल है;
पर चकोर गर्वित कि मोर-सा
मेरा मन घन-अन्‍ध नहीं है!

किसकी सुध में यों हूक रही है
कोयल बेकल कूक रही है?
मलयज से कहती कि गन्‍ध तो
है, पर उसकी गन्‍ध नहीं है!

फूल-फूल पर मँडराता है,
भ्रमर कहाँ कब बँध पाता है?
सान्‍ध्य कमल की बात और है,
वह गुलाब का बन्‍ध नहीं है!