भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदी बहती है / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 17 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नदी बहती है नीचे को
सतत बहती ही जाती है!
कभी चढ़ती भी है ऊपर,
उतरती है झरना बनकर,
हुई क़िस्मत तो सागर तक
पहुँच आख़िर यह पाती है!
समुन्दर का तपता है जल,
तपस्या का मिलता है फल,
स्वर्ग चढ़ धरती की करुणा
घटा बन वर्षा लाती है!
रीझकर हिमशेखर मानी
सहज बन जाता है दानी
द्रवित हरि-पद-नख-मणि-धारा
उतर धरती पर आती है!