Last modified on 23 नवम्बर 2020, at 18:04

कुछ रिश्तों के नाम नहीं / अशेष श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:04, 23 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशेष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ रिश्तों के नाम नहीं तो
कुछ रिश्ते हैं सिर्फ़ नाम के।

मौका देख के बनते रिश्ते
कौन हैं कब कितने काम के।

क़ीमत अदा करनी ही होती
प्राप्य नहीं कुछ बिना दाम के।

कुछ साथी ही सुबह के होते
साथी बहुत होते हैं शाम के।

काम पड़े तब ही मिलते हैं
कौन आते हैं बिना काम के।

कुछ गिनते ही रह जाते हैं
ले पाते कुछ स्वाद आम के।

लगती नहीं किनारे अपनी
जीवन नैया बिना राम के।