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कभी ज़ात में बँट गये / अशेष श्रीवास्तव

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कभी ज़ात में बँट गये
कभी मज़हब में उलझ गये
सबसे ऊपर देश है
ये बात क्यों हम भूल गये...

कभी शहरी हो गये
कभी ग्रामीण हो गये
हम सब भारतवासी हैं
ये बात क्यों हम भूल गये...

कभी इस दल के हो गये
कभी उस दल के हो गये
हर दल से बड़ा ये देश है
ये बात क्यों हम भूल गये...

कभी प्रशासक हो गये
कभी हम जनता हो गये
हम जो भी हैं इस देश के हैं
ये बात क्यों हम भूल गये...

कभी हम प्रांतीय हो गये
कभी भाषायी हो गये
हम पहले भारतवासी हैं
ये बात क्यों हम भूल गये...

आओ दीप जलायें हिल-मिल
देश प्रेम जगायें हिल-मिल
राष्ट्र पर्व मनायें हिल-मिल
घरों में दीप लगायें झिलमिल
आओ दीप जलायें हिल-मिल...