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अंतहीन यात्रा मेरी / विजय सिंह नाहटा
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अंतहीन यात्रा मेरी
और नीरस पथ पसरा हुआ
काल: ज्यों अजगर-सी फुफकार मारता
मुझको हेर रहा
मरे दोस्त! आओ इस पङाव पर ही सही
तनिक पल पर ठहरें, बतियायें
गुनगुना लें एक प्रणय गीत
नश्वरता के इस उजाड़ सूनेपन में
वही रचेगा
हमारी आत्मा का शिलालेख
मुस्कुराहट की इबारत से।