भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन / विजय सिंह नाहटा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:51, 27 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय सिंह नाहटा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन
कविता में खिला
सुबह के ताज़ा तरीन फूल-सा
और झूमता रहा
जन्म-जन्मांतर
अक्षय ताज़गी से सराबोर।
प्रिय!
तुम्हें देता हूँ यह आदिम गुलाब
जिस पर अंकित शिल्प अमरता का
इस धरती पर तुम्हारा यूं निर्भय टहलना
कमतर नहीं एक विराट दिग्विजय से
दिगंत तक फैला वैभव: इस एक महान क्षण का
तमाम नश्वरताओं के संधि-पत्र पर
ज्यों अंकित;
अमिट हस्ताक्षर
अथाह प्रेम के।