हे कवि हे महान
शव्दों में दावानल भरदे
काल कूट सारा जल जाए
नागराज फ़न नचे कन्हैया
बृंदावन निर्विश हो जाये
ऐसी झड़ी लगे सावन की
सारा मैल बहा लेजाए
एसा दीप जला दे मन में
सूरज से बांते कर पाये
जटा हटा निकले सुरसरिता
नीर क्षीर सागर हो जाए
डुबकी एक लगा यह दुनिया
नई नवेली फिर हो जाये॥