भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीस आस जोगी जग / बहिणाबाई
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 30 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बहिणाबाई |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जीस आस जोगी जग,
जीस आस छोड़ भाग,
जीस आस ले बैराग बनवास जात है॥
जीस आस पान खावे,
जीस आस धरत सोवें,
जप तप ही करतु है॥
जीस आस शिर मुंडे,
जीस आस मुच्छ खंडे,
जीस आस होते रंडे,
जलमे वसतु है॥
वो ही सत्य जान नंद,
प्रगट भया है गोविंद,
पुण्य ही तेरा अगाध,
बहिणी ये कहतु है॥