भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह घर की थी / रमेश पाण्डेय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 6 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय }} '''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स


4.


वह घर की थी

यहाँ उसका घर था

अक्सर घर और गौरैया यह तय करने बैठ जाते


पिता बाहर होते तो

बांधे रखती अपने शब्द-पाश से घर-दुआर


भाई के बीमार पड़ने पर

घर में घुसती तो बेआवाज़ फरफराते उसके पंख


माँ के भीतर गठियाई नदी का बंधन जब ढीला पड़ता तो

वह चुपके से देखती और

क़तरा-क़तरा टपकती सारा दिन


(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है