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मंगलेश की चाय / देवेन्द्र मोहन

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सरदार जी वाले रौनिका ढाबे में
सबने चाय मँगवाई
चाय के आते ही पलक झपकते
मंगलेश ने गिलास की सारी चाय
हलक़ के नीचे उतार ली —
एक घूँट में ।

‘‘पहाड़ों पर बर्फ़बारी के समय
केतली से गिलास में चाय डालते ही
एक ही घूंट में पी ली जाती है
वर्ना चाय बर्फ़ में तब्दील हो जाती है,
’’मंगलेश ने हैरान आँखों को समझाया

फिर, अगले ही क्षण,
सबने देखा —
मरुभूमि जैसे तपते इस शहर में
मंगलेश की आँखों में
बर्फ़ उतर आई थी और
एक अविरल गर्म अश्रु धारा बन गई थी