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दूर होती जा रही है कल्पना / वीरेंद्र मिश्र

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दूर होती जा रही है कल्पना
पास आती जा रही है ज़िन्दगी ।

आज आशा ही नहीं विश्वास भी
आज धरती ही नहीं आकाश भी
छेड़ते संगीत नवनिर्माण का
गुगुनाती जा रही है ज़िन्दगी ।

भ्रम नहीं, यह टूटती ज़ंजीर है
और ही भूगोल की तस्वीर है
रेशमी अन्याय की अर्थी लिए
मुस्कुराती जा रही है ज़िन्दगी ।